कभी सिर्फ सपनों में उड़ान भरने वाली लड़कियाँ आज सच में आसमान छू रही हैं। सागर ज़िले के एक छोटे से गांव पड़रिया की साक्षी पांडे उन्हीं में से एक हैं, जिन्होंने ड्रोन उड़ाकर अपनी पहचान बनाई है और अब उन्हें लोग ‘ड्रोन दीदी’ के नाम से जानते हैं। सरकार की ‘नमो ड्रोन दीदी योजना’ ने न केवल उनकी ज़िंदगी बदली बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर बनाकर हजारों किसानों के लिए मददगार भी बना दिया।
साक्षी पांडे बताती हैं कि उन्होंने ग्वालियर में 15 दिन का निशुल्क प्रशिक्षण लिया जो इफको के सहयोग से प्रदान किया गया। यह प्रशिक्षण केवल उन्हीं महिलाओं को मिलता है जो मध्यप्रदेश आजीविका मिशन से जुड़ी होती हैं। ट्रेनिंग के बाद उन्हें मार्च 2023 में एक ड्रोन, एक इलेक्ट्रिक व्हीकल और एक जनरेटर भी नि:शुल्क दिया गया। अब वे इसी तकनीक के ज़रिए खेतों में रासायनिक दवाओं का छिड़काव करती हैं, जिससे किसानों को पानी की बचत, समय की बचत और उत्पादन में वृद्धि मिलती है।
ड्रोन दीदी का काम सिर्फ ड्रोन उड़ाना नहीं है, वे किसानों को जागरूक भी करती हैं। वे बताती हैं कि पारंपरिक दानेदार यूरिया मिट्टी की उर्वरता को नुकसान पहुंचाती है, जबकि नैनो यूरिया और पेस्टिसाइड पत्तियों पर असर डालते हैं और उत्पादन बेहतर होता है। साक्षी किसानों को इस तकनीक को अपनाने के लिए प्रेरित करती हैं, जिससे कम लागत में अधिक लाभ मिल सके।
उनकी मेहनत का नतीजा यह है कि वे आज प्रति एकड़ 200 से 300 रुपए कमा रही हैं और एक सीजन में 20 से 25 हजार रुपए की कमाई कर लेती हैं। उनका कहना है कि अब खेत में छिड़काव करने के लिए न मजदूर चाहिए और न ही लंबा समय, क्योंकि ड्रोन 5 मिनट में ही एक एकड़ में छिड़काव कर देता है। एक ड्रोन में 12 लीटर का टैंक होता है जो एक बार में पूरा काम कर देता है, वहीं हाथ से यही काम करने में 80 से 90 लीटर पानी खर्च हो जाता है।
साक्षी की कहानी सिर्फ प्रेरणा नहीं, बदलाव की मिसाल है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब उन्हें स्वतंत्रता दिवस पर दिल्ली आमंत्रित किया, तो वह पल उनके लिए किसी सपने से कम नहीं था। लाल किले की प्राचीर से अपने देश के नेता को सुनना और देश की मुख्य परेड देखना उनके लिए गर्व का क्षण था।
ड्रोन दीदी योजना महिलाओं के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। इससे वे आत्मनिर्भर बन रही हैं, सम्मान कमा रही हैं और समाज में बदलाव ला रही हैं। यह योजना न सिर्फ तकनीक को गांवों तक पहुंचा रही है, बल्कि ग्रामीण भारत की तस्वीर भी बदल रही है।
निष्कर्ष: साक्षी पांडे जैसी महिलाएं यह साबित कर रही हैं कि अगर हौसले बुलंद हों और सरकार की योजनाओं का सही उपयोग किया जाए, तो कोई भी सपना अधूरा नहीं रहता। ड्रोन उड़ाने वाली यह बेटियां आज खुद आसमान की ऊंचाइयों को छू रही हैं और दूसरों को भी उड़ान दे रही हैं।
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