2025 का नोबेल शांति पुरस्कार आखिरकार घोषित हो चुका है, लेकिन दुनिया के सबसे चर्चित नेताओं में से एक डोनाल्ड ट्रंप को यह सम्मान नहीं मिला। कई लोगों को उम्मीद थी कि ट्रंप, जिन्होंने खुद को “विश्व शांति का रक्षक” बताया था, इस बार नोबेल की रेस में आगे रहेंगे। लेकिन नॉर्वेजियन नोबेल कमिटी ने उनका नाम न चुनकर दुनिया को चौंका दिया। इसके बजाय, वेनेजुएला की विपक्षी नेता मारिया कोरिना माचाडो को यह सम्मान मिला है — जिन्होंने तानाशाही के खिलाफ लोकतंत्र की रक्षा के लिए साहसिक और शांतिपूर्ण संघर्ष किया।
अब सवाल उठता है कि आखिर ट्रंप जैसे दिग्गज नेता को क्यों नज़रअंदाज़ कर दिया गया? आइए समझते हैं इस फैसले के पीछे की पूरी सच्चाई।
नोबेल कमिटी के मानदंड और ट्रंप का रिकॉर्ड
नोबेल शांति पुरस्कार की नींव अल्फ्रेड नोबेल की वसीयत पर रखी गई है, जिसमें कहा गया है कि यह सम्मान “राष्ट्रों के बीच भाईचारा, हथियारों में कमी, और शांति सम्मेलनों को बढ़ावा देने वाले व्यक्ति या संस्था” को दिया जाएगा। कमिटी ऐसे प्रयासों को प्राथमिकता देती है जो लंबे समय तक टिके रहें और जिनमें बहुपक्षीय सहयोग यानी कई देशों या संस्थाओं की भागीदारी हो।
ट्रंप के मामले में ये दोनों ही बातें कमजोर रहीं। उन्होंने भले ही 2020 में अब्राहम समझौते कराए हों या हाल में गाज़ा में युद्धविराम की कोशिशें की हों, लेकिन ये कदम कमिटी को “स्थायी शांति” नहीं लगे। विशेषज्ञों का मानना है कि शांति सिर्फ लड़ाई रोकने का नाम नहीं है, बल्कि संघर्ष की जड़ों को खत्म करने का भी प्रयास है — और यही जगह ट्रंप पीछे रह गए।
US “अमेरिका फर्स्ट” नीति और वैश्विक सहयोग की कमी
नोबेल पुरस्कार अक्सर उन लोगों को दिया जाता है जो वैश्विक एकता और सहयोग की मिसाल पेश करें। जबकि ट्रंप की नीतियां इसके उलट रहीं। उन्होंने अमेरिका को कई अंतरराष्ट्रीय समझौतों, जैसे जलवायु परिवर्तन समझौते, से बाहर निकाला और संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं की फंडिंग भी घटाई।
विशेषज्ञ थियो ज़ेनू का कहना है —
“ट्रंप अंतरराष्ट्रीय सहयोग और सुलह के प्रतीक नहीं हैं। उनकी विदेश नीति ‘अमेरिका फर्स्ट’ थी, न कि ‘विश्व शांति फर्स्ट।’”
जलवायु संकट और विवादों की दीवार
नोबेल कमिटी मानती है कि जलवायु परिवर्तन भी अब विश्व शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा है। वहीं ट्रंप ने जलवायु परिवर्तन को “धोखा” बताया था और इसके खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाया। इसके अलावा, उनके कार्यकाल में अमेरिका में हिंसक विरोध, पुलिस कार्रवाई और घरेलू तनाव भी बढ़ा — जो उनके “शांति नायक” छवि के विपरीत थे।
लॉबिंग और आत्म-प्रचार बना उल्टा असर
ट्रंप ने खुद को नोबेल के लिए बार-बार योग्य बताया, कई बार सार्वजनिक रूप से कहा कि “अगर मुझे नोबेल नहीं मिला तो यह अमेरिका का अपमान होगा।” लेकिन नोबेल के नियमों के अनुसार कोई व्यक्ति खुद को नामांकित नहीं कर सकता, और अत्यधिक प्रचार को कमिटी नकारात्मक रूप में देखती है। विशेषज्ञों का कहना है कि जो लोग खुद पुरस्कार के लिए लॉबिंग करते हैं, उन्हें अक्सर नजरअंदाज किया जाता है।
तुलना: ट्रंप vs. विजेता मारिया कोरिना माचाडो
नीचे एक सरल तालिका में अंतर समझें:
| पहलू | डोनाल्ड ट्रंप | मारिया कोरिना माचाडो |
|---|---|---|
| मुख्य योगदान | युद्धविराम डील्स (गाजा, यूक्रेन दावा), अब्राहम समझौते | वेनेजुएला में लोकतंत्र बहाली, तानाशाही के खिलाफ अहिंसक संघर्ष |
| फोकस | अल्पकालिक डिप्लोमेसी, अमेरिका-प्रथम नीति | लंबे समय का सामाजिक न्याय, समावेशी शांति |
| विवाद | जलवायु नकारना, घरेलू दमन | व्यक्तिगत खतरे में लोकतंत्र की रक्षा |
| कमिटी का मूल्यांकन | बहुपक्षीयता की कमी, प्रचार | “शांति की सच्ची बलि” |
मारिया माचाडो ने वेनेजुएला में लोकतंत्र की रक्षा के लिए वर्षों तक संघर्ष किया। उन्होंने हिंसा का रास्ता नहीं चुना, बल्कि अहिंसक आंदोलन के जरिए लोगों की आवाज़ बनीं। वहीं ट्रंप के प्रयास “राजनीतिक और विवादित” माने गए।
नोबेल कमिटी ने कहा कि मारिया “शांति की सच्ची बलि” हैं, जिन्होंने व्यक्तिगत खतरे में भी लोकतंत्र नहीं छोड़ा।
ट्रंप की प्रतिक्रिया और आगे की उम्मीदें
ट्रंप ने इस हार को “अपेक्षित” बताते हुए कहा कि “वे हमेशा लिबरल्स को ही देते हैं।” उनके समर्थक मानते हैं कि अगर गाज़ा या यूक्रेन में स्थायी शांति स्थापित हो गई तो 2026 में उनकी संभावना बन सकती है। लेकिन फिलहाल उनका रिकॉर्ड कमिटी के मानकों पर खरा नहीं उतरता।
यह सच है कि नोबेल शांति पुरस्कार हमेशा विवादों में रहा है — जैसे जब बराक ओबामा को 2009 में शुरुआती कार्यकाल में ही यह पुरस्कार मिला था, तब भी ट्रंप ने इसे “जल्दबाजी” कहा था। मगर इस साल का पुरस्कार एक बात साफ करता है —
“शांति सिर्फ डील्स का नाम नहीं, बल्कि मानवीय मूल्यों और साहस की पहचान है।”
ट्रंप की प्रतिक्रिया और भविष्य
ट्रंप ने पहले ही कहा था, “वे लिबरल्स को ही देते हैं,” और हार को “अपेक्षित” बताया। लेकिन उनके समर्थक निराश हैं। कुछ विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर गाजा या यूक्रेन में स्थायी शांति हो गई, तो 2026 में संभावना बन सकती है—लेकिन वर्तमान रिकॉर्ड से मुश्किल लगता है।
निष्कर्ष:
ट्रंप को नोबेल न मिलने का फैसला दिखाता है कि शांति का मतलब सिर्फ राजनीतिक समझौते नहीं, बल्कि सच्चे मानवीय प्रयास हैं जो समाज को बेहतर दिशा दें। और यही कारण है कि इस बार यह सम्मान मारिया माचाडो जैसी नेता को मिला, जिन्होंने डर के बजाय लोकतंत्र को चुना।
Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स, विशेषज्ञों की टिप्पणियों और आधिकारिक नोबेल कमिटी बयानों पर आधारित है। इसका उद्देश्य केवल जानकारी साझा करना है, किसी भी राजनीतिक या वैचारिक पक्ष का समर्थन नहीं।
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