ट्रंप का नोबेल झटका: भारत-पाक शांति पर झूठा दावा और भारत की सख्त प्रतिक्रिया

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कल्पना कीजिए, एक ऐसा नेता जो खुद को दुनिया में शांति का सबसे बड़ा रक्षक मानता है, लेकिन जब उसे नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिलता, तो वह पुरानी बातों को दोबारा उठाने लगता है। यही हुआ अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ। 2025 का नोबेल शांति पुरस्कार वेनेजुएला की विपक्षी नेता मारिया कोरिना माचाडो को मिला, और ट्रंप इस फैसले से बेहद नाराज दिखे। उन्होंने फिर से दावा किया कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाले युद्ध को रोका था।

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भारत ने इस बयान पर तुरंत प्रतिक्रिया दी और कहा कि यह दावा पूरी तरह झूठा है। विदेश मंत्रालय के मुताबिक भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम दोनों देशों की सैन्य बातचीत के जरिए हुआ था, इसमें किसी तीसरे देश की कोई भूमिका नहीं थी। ट्रंप के इस तरह के दावे पहले भी सामने आ चुके हैं, लेकिन भारत हर बार इसे सिरे से खारिज करता आया है।

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संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण के दौरान ट्रंप ने कहा कि अपने कार्यकाल में उन्होंने सात युद्ध खत्म किए, जिनमें भारत और पाकिस्तान का संघर्ष भी शामिल था। उनके इस बयान के बाद भारत के कई राजनीतिक विशेषज्ञों ने कहा कि ट्रंप अपनी छवि को चमकाने के लिए ऐसी बातें करते हैं। भारत की सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि कश्मीर या किसी अन्य विवाद में किसी तीसरे देश की मध्यस्थता की कोई जगह नहीं है।

ट्रंप को इस बार नोबेल शांति पुरस्कार न मिलना उनके लिए एक बड़ा झटका साबित हुआ। दिलचस्प बात यह रही कि पुरस्कार पाने वाली मारिया माचाडो ने ट्रंप को फोन कर उनका धन्यवाद किया और यह पुरस्कार उनके समर्थन को समर्पित बताया। इसके बावजूद ट्रंप के समर्थक, खासकर मैगा ग्रुप, नोबेल कमिटी पर राजनीति का आरोप लगा रहे हैं। उनका कहना है कि ट्रंप ने मध्य पूर्व में शांति समझौते कराए और यूक्रेन-रूस जैसे संकटों में अहम भूमिका निभाई, फिर भी उन्हें नजरअंदाज किया गया।

भारत के लिए यह मामला और भी गंभीर है क्योंकि ट्रंप ने एक बार फिर भारत-पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता का दावा किया है। भारत की विदेश नीति हमेशा से स्वतंत्र रही है और ऐसे झूठे बयानों से भारत और अमेरिका के रिश्तों में अनावश्यक तनाव पैदा हो सकता है। हाल ही में ट्रंप ने भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ बढ़ा दिया है, जो चीन से भी अधिक है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम ट्रंप की नाराजगी और अहंकार को दिखाता है।

इस पूरी घटना से यह साफ समझ में आता है कि शांति का मतलब केवल दावे करना नहीं होता। सच्ची शांति वही लाता है जो बिना दिखावे के काम करे। मारिया माचाडो ने लोकतंत्र के लिए संघर्ष किया और इसी साहस के लिए उन्हें सम्मान मिला। दूसरी ओर ट्रंप के दावे यह दिखाते हैं कि शक्ति और लोकप्रियता के बावजूद सच्चाई से सामना करना कितना कठिन होता है।

डिस्क्लेमर: यह लेख सार्वजनिक समाचार रिपोर्टों और उपलब्ध सूचनाओं पर आधारित है। इसका उद्देश्य किसी राजनीतिक दल या व्यक्ति का समर्थन या विरोध करना नहीं है। पाठकों को सलाह दी जाती है कि वे तथ्यों की स्वतंत्र रूप से जांच करें।

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